Wednesday, September 8, 2010

लम्हा

दिन के उजालो मे झुलस जाओगें

रात को देर से अगर घर आओगें

अपनी कस्ती को संभाले रखना

एक भूल से भंवर में खो जाओंगे

किस्तों मे ज़िन्दगी जी जिसने

उसको मौत से क्या डराओंगे

लम्हा लम्हा जीने के मज़ा और है

ये बात आप कहाँ समझ पाओंगे

सलाह मुनासिब थी सफर मे

पता नही चलता कब भटक जाओंगे

काफिला गुरबत का निकला हो जहाँ से

उस धूल मे एक अलग खुशबु पाओंगे

फकीरो के साथ सफर पर मत निकलना

चार कदम चलोगे और थक जाओंगे

डा.अजीत

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ...अच्छी अभिव्यक्ति