Monday, May 5, 2014

सच

सच का कोई आकार नही होता
यह झूठ जितना साफ़ भी नही होता
सच पर संदेह की अधिक
गुंजाईश रहती है
सच स्पष्टीकरण का बंधूआ मजदूर
हो जाता है प्राय:
सच परेशान हो सकता है
पराजित नही यह ज्ञानीजन कहते है
परन्तु झूठ कब पराजित हुआ है
इसकी मुझे जानकारी नही
झूठ को महिमामंडित करके मै
झूठ का पैरोकार नही बनना चाहता
मगर
जीने की जद्दोजहद में
झूठ की उपयोगिता सच से बढ़कर
महसूस हुई
सच ने कमजोर साबित किया
और झूठ ने प्रेक्टिकल
सच और झूठ मनुष्य का रचा
नैतिकता का झूठा स्वांग भर है
जिसमें वो खुद को ईश्वर की
सर्वश्रेष्ट कृति सिद्ध करने में लगा रहता है
झूठ यदि आदतन न बोला जाए तो
सच से अधिक राहत देता है
यह सम्बन्धों को बचाने के लिए
या आँख का लिहाज़ रखने के लिए
किसी भी गैरतमंद इंसान का
मजबूरी का हथियार हो सकता है
सच शास्त्रीय आख्यानों की तरह
देखने में सुनने में और पढ़ने में
प्रभावी होता है और
झूठ गरीब की आबरू जैसा
दिगम्बर
मनुष्य ने यदि झूठ में छल न मिलाया होता
तो यह सच की तरह सम्मानित होता
अपने आसपास सत्यवक्ताओं
और धर्मात्माओं की भीड़ के बीच
मुझे यह स्वीकार करने में
कोई शर्म नही कि
मै आत्मविश्वास से झूठ बोलता हूँ
यह सच जितना विकृत नही होता
मेरे पूरे वजूद में
बस यही सच है।


डॉ.अजीत