Sunday, July 6, 2014

थकान

तुम्हारे जीवन की रिक्तताएं
दुनिया से छिप सकती है
मुझसे नही
तुम्हारे जीवन के आकर्षण
दुनिया के लिए गुह्य हो सकते है
मेरे लिए नही
तुम प्रेम में डूबी प्रतीत होती रहो
तुम्हारे मन के टापू पर
निर्जन एकांत
मेरे लिए अज्ञात नही
खुद को बहलाने के
तुम्हारे सारे प्रयास
मुझे ज्ञात है
बावजूद
तुम हंसती बतियाती खिलखिलाहती हो
बेवजह मुस्कुराती हो
क्या तो तुम सिद्ध हो गई
या फिर अन्तस् से चालाक
ये दोनों बातें एक ही दशा में
गलत साबित हो सकती है
मेरे सारे कयास
तभी मेरे मनोविकार में तब्दील हो सकते है
अगर
तुमने सम्पादन रहित प्रेम का कौशल
सीख लिया हो
परन्तु
यह कौशल कमबख्त सीखा नही
जिया जाता है
इसलिए मै आश्वस्त हूँ
तुम प्रेम में नही
अभिनय में जीवन जीना
सीख गई हो
किसी भी प्रेम के अध्येता के लिए
इस जीवन उत्साह को समझना
बेहद मुश्किल काम है
जो इनदिनों मै कर रहा हूँ
यह खत उसी थकान के सहारे
तुम तक भेज रहा हूँ
बैरंग।
© डॉ. अजीत