Wednesday, July 23, 2014

युक्ति

मित्रता की गति का असामान्य होना
अपनेपन की अभिव्यक्ति पर
नियन्त्रण न होना
जीवन में दखल की तरह शामिल होना
निसंदेह अपरिचित से
परिचित बनने के सफर पर निकले
किसी मित्र के मन पर
सन्देह की काई जमा सकता है
उसे शंका की दीवार खड़ी करने के लिए
मजबूर कर सकता है
सामान्य बात को
अन्यथा लिए जाने की दिशा में ले जा सकता है
आकस्मिक रूप से
स्थगन प्रस्ताव लाने के लिए
बाध्य कर सकता है
यह सब इसलिए सहज है
क्योंकि
दूनिया के अधिकाँश भले लोग
जीवन में कम से कम एक बार
ठगे जा चुके है
उनके अनुभव डर के प्रमाण पत्र है
विश्वास-अविश्वास और वास्तविक मन्तव्य
के त्रिकोण में कोई भी
अतिरिक्त सतर्क या छला गया मनुष्य
उलझ सकता है
अप्रत्याशित रूप से
चुप्पी लगाकर निकलने
का जतन कर सकता है
मन ही मन खीझ सकता है
उस घड़ी को एकांत में कोस सकता है
जब पहली बार उससे मिला था
इसमें कुछ भी गलत नही है
भोगा हुआ यथार्थ कुछ
अन्य मित्रों के अनुभव
निजता के प्रश्न
दरअसल मनुष्य को
सुरक्षित बनकर सिमटने के लिए
प्रेरित करते है फिर
खुद के जीवन की समस्याएं
और अपने संसार की मृगमरीचिका
मनुष्य को समझदार बनने पर
मजबूर करती है
और समझदार लोगो में
दिल के सच्चे
जबान के पक्के
दोस्त तलाशना
इस दौर का सबसे बड़ा आत्मघाती कदम है
क्योंकि
इसमें आप खुद को नुकसान पहूँचाते है
अपने अपरिचित मित्र को डराते है
इसलिए
इस डरी-ठगी दुनिया में
सम्वाद अब अपना अर्थ खो बैठा है
हम सब मौन रहें और केवल खुद के बारें में सोचें
सफल,शांत तनावरहित जीवन जीने की
बस यही एकमात्र युक्ति
अब शेष बची है।
© अजीत

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

सही बात वही तो कर रहे अब लोग मेरे शहर में ।