Monday, August 4, 2014

गणित

तुम्हारे समानांतर चलते हुए यह जाना
जीवन दर्शन के इतर भी बिखरा होता है
छोटी छोटी खुशियों में
छोटे -छोटे रंज और मलाल में
जरूरी नही हर बात पर
बुद्धि की राय ली जाए
दिल से सोचना तुम्हारे सत्संग से सीख पाया
तुम्हारे सापेक्ष चलते हुए यह जाना
अकेला होना मृत्यु से भी बड़ा सच है
आसक्ति एक युक्ति भर है व्यस्त दिखने की
शिखर का एकांत घाटी से पलायन है
तुम हंसती हो तो
मन की गिरह खुलती जाती है
तुम मुस्कुराती हो तो
अज्ञानता का अभिमान होने लगता है
तुम्हारी आँखों के ज्वार भाटे
लापरवाह नही है इसलिए तुम्हें कभी रोते नही देखा
तुम्हारा धैर्य पहाड़ का छोटा भाई है
तुम्हें शिकायत करते नही सुना कभी
तुम्हारे मन की सतह पर अनुराग की काई है
यह फिसलकर भी जाना नही जा सकता है
तुम्हें समझना खुद की समझ पर सतत प्रश्नचिन्ह
लगाए रखने जैसा है
इसलिए तुम्हें सिर्फ जिया जा सकता है
अपने अधूरेपन के साथ
पूर्णता के बाद पारस्परिक रुचियाँ अर्थ खो देती है
इसलिए तुमसे मिलने के लिए
जीवनपर्यन्त अधूरा ही रहना होगा
यह तुम्हारी एकमात्र लौकिक शर्त है
जिसे स्वीकार कर
देह से इतर जीने का कौशल सिखा जा सकता है
हर लिहाज़ से
यह बहुत छोटी कीमत है
बशर्ते
जीवन को गणित न समझा पाए
और मनुष्य को साधन।
© अजीत


1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

हमेशा की तरह लाजवाब कृति ।