Friday, September 19, 2014

खूबसूरती

ख़ूबसूरती आँखों में
बसती है
मगर यह व्याप्त रहती है
जगह-जगह
किसी एक को कभी नही
कहा जा सकता
सबसे खूबसूरत
कई प्रेमी बोलते है
यह कोरा झूठ
नेत्र सम्पर्क के आत्मविश्वास के साथ
ख़ूबसूरती तरल होती है
यदि ईमानदारी से देखा जाए
भिन्न भिन्न परिस्थितयों में
ख़ूबसूरती बदल जाती है
जो व्यक्ति खूबसूरत दिखता है
एक ख़ास समय में
हो सकता है कुछ समय बाद
वो लगने लगे बेहद सामान्य
यह सामान्य लगना
हमारे मन की एक खूबसूरत चालाकी है
जिसमें आँखों की मदद लेता है वो
यदा-कदा
एक साथ कई खूबसूरत चेहरे देखने पर
हम कन्फ्यूज्ड नही होते
बल्कि सबमें महीन फर्क
करना जानते है
खूबसूरती मन और समय सापेक्ष होती है
इसलिए ख़ूबसूरती की तारीफ़
सावधानी से करनी चाहिए
खूबसूरत व्यक्ति को ठीक ठीक
पता होता है अपनी ख़ूबसूरती का
वो हंसता है या फिर आत्म मुग्ध होता है
ख़ूबसूरती की तारीफ़ सुनकर
तन और मन की ख़ूबसूरती  पर
सहमति नही बन सकती कि
कौन पहले आती है या
चल सकती है दोनों साथ साथ
ख़ूबसूरती की समझ की वजह से
कुछ आत्मविश्वास से भरे रहतें है
तो कुछ ढोंते है उम्र भर हीनता की ग्रन्थि
खूबसूरती भेद करती है
और करना सिखाती है
इसलिए यह
बेहद बदसूरत भी दिखती है
कभी-कभी।

© डॉ. अजीत