Sunday, September 21, 2014

वो

उसकी बातों
किस्सों
और अनुभवों को
सबसे पहले गम्भीरता से न लेना
दोस्तों ने शुरू किया
फिर पत्नि ने
उसके बाद मां-बाप ने
और सबसे बाद उसके बच्चों ने
उसकी गालबजाई को गल्प माना
अपने दौर में वो
इस तरह से खारिज हुआ कि
उसे खुद से ही चार बार पूछना पड़ता
कुछ भी कहने से पहले
ऐसा नही उसकी बातों में
दार्शनिक या साहित्यिक
गुणवत्ता का अभाव था
उसकी बातों में भरपूर रस था
मगर वो समय से तादात्म्य न बना सकी
वो क्या तो अतीत में जीता
या भविष्य का नियोजन प्रस्तुत करता
उसके वर्तमान का सबसे
स्याह पक्ष यही था
वो काल गणना में निरक्षर रह गया
उसके पास  समय के षड्यंत्रो के
कुछ चुस्त समाधान थे
मगर उन दिनों वो मौन में था
अन्यथा की एक सीमा से अधिक
अन्यथा लिया गया उसे
एक बुरे दौर में वो
स्पष्टीकरण  की प्रमेय सिद्ध करता पाया जाता
शराब पीने के उसके पास
अकाट्य दार्शनिक तर्क थे
उसने इतनी धीमी गति से सिमटना शुरू किया कि
नजरों से कब ओझल हुआ
किसी को पता न चला
कुछ तलबगार उसे तलाशते
उसके टीले तक पहूंचे
मगर वो नए और पुराने पते को मिला
एक ऐसा नया पता देता
जहां न कोई सवारी पहूँचती
और न खत
पिछले दिनों उसकी एक चिट्ठी मिली
जिस पर एक त्रिकोण बना था
और नीचे एक सपाट रेखा खींची थी
इसके अलवा खत कोरा था
तबसे उस बेफिक्र की
फ़िक्र बढ़ गई
न जाने कहां और कैसा होगा
ये तो तय है
वो जहां भी होगा
ठीक वैसा ही होगा
जैसा कभी मिला था
पहले दिन।

© डॉ. अजीत

No comments: