Sunday, September 28, 2014

बहानें

सात: बहाने जीने के
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सपनें
रोज नही बदलते
कुछ कभी नही बदलतें
कुछ यदा-कदा बदलतें है
सपनों की फितरत
बदलना है
कभी हमें कभी खुद को।
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वादें
उम्र के बढ़ने पर
बहुत याद आतें है
जिनको पूरा कर सकते थे
मगर नही कर पाएं।
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यादों का
अपना
ब्लैक एंड वाइट
चश्मा होता है
जिनकी मदद से देख पाते है
बूढ़ा अतीत।
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खुशी
किस्तों में उधार मिलती है
खर्च होती है
एकमुश्त !
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गम
एक बहाना है
खुद को नायक साबित करने का
रोजमर्रा की जंग की
एक सबसे बड़ी
जरूरत
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नाराजगी
देर तक जिसके हिस्से में
रहती है
वो बन जाता है
लोक सिद्ध।
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संघर्ष
कभी खुद से
कभी जग से
हिसाब नही होता
कभी बराबर।

© डॉ.अजीत