Sunday, October 19, 2014

कारोबार

ख़्वाब बेचकर
नींद खरीदी
नींद बेचकर
ख़्वाब
इस कारोबार में
मुद्रा की तरह
मेरा अवमूल्यन हुआ
मोल भाव के चक्कर में
ढेरों समझौते करने पड़े
यह वस्तु विनिमय सा
आसान न था
यह सेंसेक्स की तरह
अनिश्चित था
इक्विटी/कमोडिटी सा जोखिम भरा
जोखिम ही इसका
अधिकतम रोमांच था
नफा नुकसान का अनुमान
खुद नही लग पाता
इसके अर्थशास्त्र की यही
बड़ी कमजोरी है
और जो इसके जानकार है
वो दोस्त है कि दुश्मन
यह बता पाना जरा
मुश्किल है
दरअसल जब तक
रिश्तों की आढ़त पर
आप ख़्वाब नींद के इस कारोबार की
बारीकियां सीखते है
तब तक आप खुद को
भरे बाजार में अकेला खड़ा पाते है
जहां हर मोल भाव के बाद
एक ही बात लगती है
कहीं हमें
ठग तो नही लिया गया है !

© डॉ.अजीत

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

ठगे जाने का भी अपना आनंद होता है :)