Wednesday, December 10, 2014

आग

एक आग जलती है
सीलन इतनी ज्यादा है
ताप को धुआं निगल जाता है
जलने का मतलब
प्रकाश ही नही होता है हर बार
कुछ आग अंधेरे में भी जलती है
जिसके ताप में
कतरा कतरा पिंघलते जाते है हम
रोशनी की आस में
ताप खो जाता है
खुद ही जलते है और
खुद को ही जलाते है
मन की दहलीज पर
इस आग की अंधी रोशनी होती है
वक्त हमें सेंकता है
अपनी शर्तों पर
समझदारी इसी को
कहते है शायद।

© डॉ.अजीत

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