Saturday, January 3, 2015

सच

विस्तार और सिमटने के
मुहाने पर हुई मुलाक़ात
असमंजस के विज्ञापन
प्रकाशित कर
भरम का व्यापार करती है
बढ़ते कदमों की परछाईयां
निशान नही छोड़ती
विस्तार अभिलाषा का दास है
सिमटना कमजोरी का प्रतीक
जीवन की गति
भरम के सहारे बढ़ सकती है
परन्तु टिकती यथार्थ के बल पर है
देह और चेतना के जुड़ाव
सम्वेदना का सहारा लेते है
और सम्वेदना एक अज्ञात प्यास से
जो तृप्ति से बढ़ती जाती है
तमाम ज्ञात प्रश्नों के उत्तर
उस अज्ञात से मिलते है
जिसे अनुभव कहा जाता है
संदिग्ध जीवन के सूत्र सिखाते है
भेद-विभेद
ऐसी मुलाकातों की स्मृतियां
उम्र में बड़ी मगर शक्ल में छोटी
नजर आती है
खुद का सच
जीवन के सच से
हमेशा बड़ा होता है।

© डॉ. अजीत

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