Monday, February 16, 2015

प्रेम पथ

एक व्यक्ति प्रेम लिखता है
एक व्यक्ति प्रेम करता है
एक व्यक्ति प्रेम में जीता है
तीनों व्यक्ति आपस में
कभी नही मिलते
प्रेम रूपांतरित करता है
तीनों को अलग अलग ढंग से
प्रेम करता व्यक्ति
नही लिखता प्रेम पर एक भी शब्द
उसे इतनी फुरसत कहां कि
ख्यालों को शब्दों का आकार दे
वो मंद मंद मुस्कुराता है
प्रेम कविताएँ पढ़कर
विस्मय से भरता है
लिखने वाले की नादानी पर
प्रेम में जीता व्यक्ति
प्रायः आध्यात्मिक लगता है
समझ नही आता है
उसकी भक्ति शक्ति और प्रेम का अंतर
इन तीनों में सबसे
निर्धन वो व्यक्ति है
जो लिखता है प्रेम
प्रेम कविताओं और कहानियों की शक्ल में
वो शापित है
प्रेम का उधार अपने कंधें पर ढ़ोने के लिए
जिन कविताओं के
बिम्ब प्रतीक और रूपकों को पढ़
हम लगाते है उसका रूमानी होनें का अनुमान
वो दरअसल होता है
शिल्प और सम्वेदना का गढ़ा हुआ
एक कोरा अनुमानित झूठ
वो अन्तस् से हो सकता है
बेहद कठोर और शुष्क
प्रेम करना
प्रेम में जीना
प्रेम लिखने से हमेशा बड़ा काम है
इसलिए साहसी लोग बन पाते है प्रेमी
और अपेक्षाकृत छलिया और कायर
बन जाते है प्रेम के लिखनें वाले
जिनके वाग विलास में
प्रेम खेलता जरूर है
मगर हार या जीत का सुख
हमेशा आता है उन्हीं के हिस्से
जो करते है प्रेम या
जो जीते है प्रेम
प्रेम कविताओं की रुमानियत
गल्प का ही एक विस्तार है
जिन्हें पढ़कर हम
चमत्कृत हो सकतें
जिनके पास है प्रेम की वास्तविक अनुभूतियाँ
वो कवि या लेखक नही है
वो पाठक हो सकते है
गुमनाम से
जो लिख रहे है प्रेम
वो दुनिया के सबसे अभागे शख्स है
जिनके हिस्से जब प्रेम नही आया
तब वो लिख कर बताने लगे
प्रेम की दिव्यता
कल्पना सच से ज्यादा खतरनाक और जीवन्त होती है
इसकी पुष्टी करता है मनोविज्ञान
तभी तो जानकार लोग
प्रेम कविताओं को पढ़ मुस्कुरा देते है
प्रेम कर रहे लोग
प्रेम में जीते लोग
नही पढ़ पाते प्रेम के आख्यान
उन्हें जरूरत भी नही इनकी
प्रेम को लिखने वाले
और प्रेम को पढ़ने वाले
सम्भवतः दुनिया के सबसे रिक्त लोग है
जो भरते है रोज़ खुद को
प्रेम के सहारे
प्रेम रहस्यमयी होने के साथ साथ
होता है उदार
जो सबको देता ही है
कुछ न कुछ
चाहे वो
प्रेम लिखने वाले हो
प्रेम करने वाले हो या
प्रेम को जीने वाले हो
प्रेम को समझना आसान है
प्रेम को जीना थोड़ा मुश्किल
प्रेम को लिखना चालाकी से भरा
ताकि पढ़ने वाला यह
भेद न कर सकें कि
आप प्रेमी है या
प्रेम को लिखने वाले
एक खाली मजदूर।

© डॉ. अजीत

No comments: