Sunday, February 8, 2015

टूटे स्वर: वक्त के वाद्य यंत्र के

तुम्हारा मिलना
अस्तित्व का नियोजन था
तुम्हारा बिछड़ना
मानवीय त्रुटि
अधूरापन ईश्वर की युक्ति है
जिसके सहारे रचा जाता है
प्रार्थना का सतही खेल।
***
प्रेम में आहत मन का
पुनर्वास
मन के वैज्ञानिक नही कर सकते
कोई सांत्वना असर नही रखती
प्रेम की चोट पर
प्रेम ही लगा सकता है मरहम
मगर जख़्म बचा रहता है
किन्तु परन्तु शक्ल में
हंसते हुए चेहरों का
एक सच यह भी है।
***
तुम्हारे लिए उपलब्ध
विकल्पों में
शायद एक सबसे बेहतर विकल्प था मैं
मगर मेरे लिए तुम
विकल्प नही संकल्प थी
विकल्प और संकल्प के
मध्यांतर पर
तुम लौट आई स्वेच्छा से
अब मेरे पास
ना कोई विकल्प था ना संकल्प
यह एक बड़ी अज्ञात निर्धनता थी मेरी।
***
बहरहाल
तुमनें रच ली अपनी
समानांतर दुनिया
हवा,धरती,आकाश, चाँद,सूरज और सितारें
इस दुनिया का
एक संक्षिप्त हिस्सा था मै
जो मिटता गया
कच्ची पेंसिल की लिखावट सा
सबसे जोखिम भरा था
ऐसे चित्रकार से प्रेम करना
जिसका अनुराग अस्थाई था।
***
जिस वक्त
तलाश रहा था मैं
प्रेम
उस वक्त तुम
प्रेम की उपकल्पना का परीक्षण कर
सिद्ध कर चुकी थी
अपना प्रयोग
मेरी तलाश में तुम्हारा होना
एक संयोग था
और तुम्हारे प्रयोग में मेरा होना
एक चयन
सबकुछ विज्ञानसम्मत था
प्रेम को छोड़कर।
***
तमाम त्रासद
असहमतियों के बावजूद
प्रेम दशमलव में बचता रहा
इस बात पर गर्व किया जा सकता है
हमारे प्रेम में सब कुछ लौकिक था
बस प्रत्यारोप नही थे
इसी वजह से
आज शर्मिंदा नही है हम।
***
सम्भव है आज से
ठीक दस साल बाद
तुम्हें मेरी बातें
असामान्य न लगें
समय रचता है
कालबोध के साथ भ्रम भी
जो टूटता है
एक अप्रासंगिक
संधिकाल पर
बिना आवाज़ के साथ।

© डॉ. अजीत 

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