Monday, March 2, 2015

सात अधूरे दर्शन

सात स्वप्न: कुछ अधूरे दर्शन
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जाता हूँ अनन्त की ओर
एकदम अकेला
साथ का होना
कमजोरी का प्रतीक है
कोई भी साथ
अनन्त तक नही जाता
जब छूटना तय है
तो फिर अब या तब
क्या फर्क पड़ता है।
***
सबसे उदास बात कहने के लिए
लेना पड़ता है मुस्कान का सहारा
भाषा की अपनी सीमाएं
लिपि के अपने अन्धकार।
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खतों के हाशिए पर
कुछ लफ्ज़ टिके थे
जिन्हें मुख्यधारा में शामिल करना था
अफ़सोस हर खत अधूरा रहा
ये लफ्ज़ करते है सवाल
एकांत में
इनके साथ हुए अन्याय पर मौन हूँ
सवालों से घिरकर
याद आता है तुम्हारा बौद्धिक होना।
***
एक दुसरे को
नजदीक से कैसे देखते हम
मुझे दूर
तुम्हें निकट का दृष्टि दोष था
उस पर दोनों की आँख पर
गलत नम्बर का चश्मा लगा था
ये बात तब पता चली
जब नंगी आँख पढ़ा
तुम्हारा आख़िरी खत।
***
कई दफा जरूरी होता है
बचाकर रखना थोड़ा रहस्य
थोड़ा अज्ञात
जानने के बाद समस्त
खास बनता जाता है आम
मनुष्य को चाहिए हमेशा कुछ नया
चमत्कार की हद तक
मनुष्य होने की अपनी सीमाएं है
ये बात ईश्वर भी जानता है।
***
मन के पास उड़ान है
बुद्धि के पास ज्ञान
मन उड़ता जब होकर निडर
बुद्धि जाती है डर
मन होता रहे अप्रासंगिक
हमेशा बचती रहे थोड़ी उदासी
बुद्धिमान होने के यही बड़े लक्षण है।
***
प्रेम के विमर्श
कविता के सहारे आगे नही बढ़ते
इन्हें चाहिए होती है
सफलता की जमीन
और समानता का आकाश
कविता प्रेम का रास्ता दिखा सकती है
मगर मंजिल पाने के लिए
आदर्श होना अनिवार्य है
प्रेम की मांग अनुराग से पहले
परफेक्ट होनें की है
दिल तो नाहक बदनाम है जबकि
सच तो यह है
दिमाग से किया जाता है प्रेम।

© डॉ. अजीत

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