Sunday, May 3, 2015

अति

सबसे ज्यादा डर
अपने गांव/शहर के लोगो से लगता है
सबसे ज्यादा शंकालु
मेरे मुहल्ले के लोग है
सबसे ज्यादा बैचेन
मेरी जाति के लोग है
सबसे ज्यादा असुरक्षित
मेरे धर्म के जानकर लोग है
सबसे ज्यादा मुझे अन्यथा
मेरे करीबी दोस्त लेतें है
सबसे ज्यादा व्यंग्यबाण
मुझे उनके लगे जो जानते है मुझे
लगभग डेढ़ दशक से
सबसे ज्यादा अनजाना
मेरा खुद का पड़ौसी है
रिश्तेंदारों की तो बात ही छोड़िए
अपने आसपास पसरी
इतनी अति के बीच
लिखना है मुझे प्रेम
बताना है अपना स्थाई दुःख
कहनी है अपनी तमाम कमजोरियां
हमेशा उतना आसान नही होता
जितना आसान दिखता है जीवन
इस एक जीवन में
यदि ये सब मैं कर पाया तो
उनके भरोसे पर कर सकूंगा
जो उपरोक्त में से एक भी नही है।

© डॉ. अजीत

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