Tuesday, April 12, 2016

डर

एक कविता लिखी थी तुम्हारे लिए
जिसका पाठ सुनना था तुमसे

कुछ जंगली फूल लाया था तुम्हारे लिए
उन्हें गूंथना था तुम्हारी वेणी में

तुम्हारी एक मौलिक किस्म की गंध थी मेरे पास
जिसे ले जाना चाहता था समन्दर तक

एक कप चाय पीनी थी तुम्हारे साथ
रसोई में खड़े होकर

बिस्तर पर ऐसे बैठना था न पड़े एक भी सिलवट
और बैठा रहूँ ठीक तुम्हारे सामनें

कुछ नदी किनारे मिलें छोटे पत्थर सौपने थे तुम्हें
ताकि तुम सूंघ कर बता सको उनका द्रव्यमान

एक सूखी जंगली वनस्पति का टुकड़ा देना था तुम्हें
जिसे तुम लगा सकती थी अपने जूड़े में

पूछना था तुमसें
समय का समास
अपेक्षा का तद्भव
प्रेम का विशेषण
रिश्तों का सर्वनाम

बताना था तुम्हें
तरलता का बोझ
पलायन और अनिच्छा में भेद
डर का कायरता से इतर का संस्करण
खेद का मनोविज्ञान

बस, इन्ही छोटी छोटी ख्वाहिशों से डर के
ईश्वर ने सही वक्त पर मिलनें नही दिया तुमसें।

© डॉ.अजित

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