Tuesday, April 26, 2016

सम्बोधन

मैंने एकदिन मॉल से उसे फोन किया
और पूछा क्या लाऊँ तुम्हारे लिए?
उसनें बड़ी सहजता से कहा खुशी
मैंने कहा खुशी भी खरीदी जा सकती है क्या
वो बोली हां बिलकुल खरीदी जा सकती
बशर्ते तुमनें आने से पहले मुझे फोन किया होता
मैंने कहा इस साइड आया था सो आ गया
वो हंसते हुए बोली
इस साइड आए हो तो अपने लिए सामान खरीदों
खुशी किसी भी साइड मिल जाएगी
जब तुम्हारे साथ मैं होउंगी
जब जरूरत तो समय से फोन करना।
****
एकदिन मैंने कहा
कोई एक सामान दिलवाना चाहता हूँ तुम्हें
बोली हाँ दिलवा दो ना धूप का चश्मा
मैंने कहा धूप का ही क्यों?
एक तो नजर का मेरे पास है पहले से
दूसरा धूप में तुम्हें ठीक देख नही पाती
आँखें बन्द बन्द हो जाती है
मैंने कहा छाँव में देख लिया करों
इस पर बोली
देखना कोई मुद्दा नही वैसे मगर
मुझे तुमको धूप में ही देखना पसन्द है
तुम तब सच के सबसे करीब होते है
लगता है तलाश रहे हो धरती पर सिर्फ मुझे।
***
मैंने कहा एकदिन
चलो चाय पीने चलतें है
इस पर बोली
चाय तो रोज़ ही पीते है
चलो आज बीयर पीने चलते है
इस पर मैं सकपका गया
मैंने कहा मुझे पसन्द नही बीयर
जो पसन्द नही उसको जरूर पीना चाहिए
जो पसन्द नही उसके साथ जरूर जीना चाहिए
मैंने कहा दूसरी बात क्या मतलब हुआ
कुछ नही बीयर पी लो समझ आ जाएगा
उसनें कहा नही को भूल जाओं कुछ वक्त के लिए
फिर देर तक हम हंसते रहें पीकर।
***
अचानक उसनें पूछा
क्या तुम कम्युनिस्ट हो?
मैंने कहा नही
प्रेम का सर्वाहारा हूँ
क्या तुम पूँजी के सहारे प्यार समझना चाहती हो
मैंने सवाल किया
उसनें कहा नही
प्यार किसी के सहारे नही समझा जाता
न मेरा क्रान्ति में विश्वास है और न शोषण में
फिर किसमें में है? मैंने पूछा
तुममें है बस कॉमरेड
पहली दफा उस सम्बोधन पर मैं खुश हुआ
जो नही था मैं।

©डॉ. अजित

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