Thursday, June 23, 2016

उम्मीद

कल तुम्हें फोन किया
फोन स्विच ऑफ़ बता रहा था

मैंने दोबारा मिलाया तो
आउट ऑफ़ रेंज बताया गया

जो मध्यस्थ मुझे तुम्हारे फोन के बारें में बता रहा था
उसकी आवाज़ इतनी शुष्क थी कि
तीसरी दफा फोन करने की हिम्मत न हुई

हारकर एक एसएमएस किया
मगर उसकी डिलवरी रिपोर्ट नही आई

कल तुम कहां थी
ऐसा बेतुका सवाल नही पुछूँगा
मगर कल जिस जगह तुम्हारा फोन था
वो दुनिया का सबसे भयभीत करने वाला कोना था

हो सकता है ये चार्जिंग पर टंगा हो
या फिर फ्रिज के ऊपर हो
ये तकिए के नीचे भी हो सकता है

खैर कहीं भी हो मुझे क्या
तुम्हारी चीज़ है
मुझे पुलिसिया ढंग से
पूछताछ करने का कोई हक भी नही
मगर कल जब तुमसे बात न हो पाई
और मध्यस्थ पुरुष ने मुझे
दो अलग अलग बात बताई तो

यकीं करो दोस्त !
मैंने खुद से ढ़ेर सारी बातें की
उन बातों में जगह जगह तुम थी

दरअसल, ऐसा करके मैं खुद को भरोसा दिला रहा था कि

फोन ही तो नही मिल रहा है मात्र
तुम एक दिन जरूर मिलोगी
उसदिन तो बिलकुल मिलोगी
जिस दिन तुम्हारी सबसे सख्त जरूरत होगी मुझे

फिलहाल उम्मीद तुम्हारे फोन के विकल्प के रूप में
अपनी मेमोरी में सेव्ड कर ली है
झूठ नही कहूँगा थोड़ा सा डर भी है कि
कहीं तुम्हारे फोन की तरह ये भी किसी दिन
स्विच ऑफ़ या आउट ऑफ़ रेंज न मिले।

©डॉ.अजित

1 comment:

Pushpendra Gangwar said...

भावनायों की ख़ामोशी...

शायद यही लिख सकता हूँ इन पंक्तियों के लिए डॉ साहब.