Friday, September 16, 2016

अफ़सोस

उसे नही पता
वो कैसे खुश होता है
उसने उसे मुद्दत से खुश नही देखा है
उसे ये भी नही पता
कौन सी बात उसे खुश कर सकती है
उसने देखा है उसे
खुश होने वाली बात पर
बेवजह उखड़ते हुए

वो खुश नही दिखता
इसका मतलब यह भी नही
वो दुखी है
तो क्या वो दुखी दिखता है
उसने खुद से पूछा कई बार
कोई सही जवाब नही मिला

खुशी एक सापेक्ष भाव है
दुःख से ज्यादा अमूर्त
जिसे आकार लेने में लगता है
लम्बा वक्त

उसने पूछा उससे दुःख के बारे में
सुनाए उसे प्रेरणा के कथन
जगाई सोई हुई सम्भावना
अपने दुख का कोई सही जवाब नही था उसके पास
अपनी खुशी को परिभाषित कर सकता था वो
मगर उसने ऐसा किया नही कभी

वो जितना खुला नजर आता
उससे कई गुना बन्द भी था
अपनी बंद दुनिया में

वो दोनों खोलते थे बाहर की ओर दरवाजे
उनकी खिड़कियां अंदर की तरफ खुलती थी

रोशनी वहां जिद नही करती थी
अँधेरा वहां एकाधिकार नही चाहता था
ऐसी संदिग्ध जगह वो दोनों
केवल सोचते थे प्रेम के बारे में

प्रेम को सोचते हुए उन्होंने जाना
खुद को सम्पूर्णता में
उनका अधूरापन कभी सहायक नही हुआ
प्रेम के मामलें में

पता नही ये बात
खुश होने लायक थी
या अफ़सोस करने लायक।

© डॉ.अजित