Friday, September 23, 2016

पिता के श्राद्ध पर

पिता के लिए...
तुम पिता थे मेरे
मेरे जीवन में लगभग अनिमंत्रित
बहुत से व्यक्तिगत आक्रोश थे मेरे
कुछ हास्यास्पद शिकायतें भी थी
जो कभी सुनाई नही तुम्हें
बचपन से तुम्हारी एक छवि थी
डर हमेशा आगे रहता
तुम हमेशा पीछे
एक वक्त तुम्हें देख शब्द अटक जाते थे मेरे
भूल जाता था मै चप्पल पहनना भी
शर्ट पहन लेता था पायजामे पर
थोड़ा बड़ा हुआ तो
मैंने तर्को से कई बार किया तुम्हें खारिज़
और विजयी मुद्रा में घूमता रहा आंगन में
असल में वही मेरी असल पराजय थी
जो पराजय का श्राप बन चिपक गई
मेरे अस्तित्व से
एक वक्त वो भी देखा
जब थे तुम बेहद मजबूर
दिला रहे थे मुझे आश्वस्ति
परेहज करने के भर रहे थे शपथ पत्र
तुम्हें लगा मैं डॉक्टर को ठीक ठीक बता सकता हूँ
तुम्हारी दशा
और बचा लूँगा तुम्हें उस वक्त मौत के मुंह से
मैं तुम्हारा बेटा था
मगर उस वक्त तुम
मुझे अपने पिता की तरह देख रहे थे
तुम गलत थे उस वक्त
मैं हमेशा से मजबूर था तुम्हारे सामने
बात जीवन की हो या मौत की
रहा हमेशा उतनी ही मात्रा में मजबूर
तुम्हें बचाने के मामले में
मैं मतलबी हो गया था
नही मानी तुम्हारी अंतिम इच्छा
जब तुमने कहा मुझे मेरी माँ के पास ले चले
वास्तव में मुझे नही पता था
ये आख़िरी शब्द होंगे तुम्हारे
हो सके तो मेरी अवज्ञा के लिए
मुझे माफ़ करना पिता
मैंने विज्ञान को मान लिया था ईश्वर
और इस झूठे आत्मविश्वास में था कि
अस्पताल से ले जाऊंगा तुम्हें ठीक कराकर
नही पता था
कलयुग में नही होता कोई ईश्वर
बस एक सच्चाई होती है मौत
जो नही छोड़ती किसी पिता या पुत्र को
तुम्हारी मौत से पहले
मुझे मांगनी थी कुछ अश्रुपूरित क्षमाएं
मुझे पता था
तुम माफ़ कर दोगे तुरन्त
मगर तुम चालाकी से निकल गए चुपचाप
अब ये क्षमाएं मेरे कंधे पर सवार रहती है हमेशा
आंसू भी नही देते है इनका साथ
सच ये है तुम बिन बड़ा अकेला पड़ गया हूँ मै
इतना अकेला कि जितने अकेले हो
तुम अपनी दुनिया में
और
दो अकेले पिता पुत्र
कभी नही मिला करते
न इस लोक में
न उस लोक में।
(पिताजी के श्राद्ध पर)

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

श्रद्धाँजलि पिता को श्राद्ध पर्व पर ।