Sunday, December 18, 2016

तुम बिन

तुम मेरे जीवन में
पूर्ण विराम थे
आधे अधूरे वाक्य
और प्रश्नचिन्ह के बाद
अनिवार्य थी तुम्हारी उपस्थिति
तुम्हारा बिना अर्थ छूटे सब अधूरे
बिगड़ा जीवन का व्याकरण
अब कोई यह तय नही कर पाता
मुझे पढ़ते हुए
उसे कहाँ रुकना है।
*****
तुम मेरे जीवन में
अवसाद की तरह व्याप्त थे
तुम्हारे बिना लगता था खालीपन
तुम रह सकते थे
सुख और दुःख में एक साथ
तुम्हारे बिना
सुख और दुःख में मध्य अटक गया मै
इसलिए
नजर आता हूँ
हंसता-रोता हुआ एक साथ।
***
दो दिन से मुझे बुखार है
माथे पर रखा हाथ याद आता है मुझे
ताप जांचता हूँ गालों को छूकर
आँखों बंद करता हूँ तो
नजर आती हो तुम नसीहतों के साथ
बीमार हूँ मगर खुश  हूँ
ये खुशी
तुम्हारी बात न मानने की है।
***
उन दिनों और इन दिनों में
ये एक बुनियादी फर्क है
अब बुरा लग जाता है
बेहद मामूली बातों का
तुम्हारे बिना खुद को बचाना पड़ता है
दुनिया और उसकी धारणाओं से
तुम्हारे साथ लड़ना अनावश्यक लगता था
उन दिनों अनायास लापरवाह था
इन दिनों सायास सावधान हूँ मैं।

© डॉ.अजित