Thursday, December 29, 2016

रास्ता भूल

मैं कही खो गई हूँ शायद
शायद इसलिए कहा
क्योंकि
अब मै पता नही पूछ रही हूँ
पता पूछने वाला
जरूर एकदिन कहीं पहुँच ही जाता है
मुझे जहां या कहां जाना था
ये मैं ठीक से शायद बता भी दूं
मगर क्यों जाना था
ये बता पाना मुश्किल होगा मेरे लिए

अनुमानों के जरिए एक चित्र बनाती हूँ मै
चित्र में शायद जोड़ रही हूँ क्योंकि
रास्ता भूलने के कारण
चित्र की ध्वनि लग सकती है
कुछ कुछ मानचित्र जैसी

उस चित्र में मैं हूँ तुम हो
मगर कोई दृश्य नही है
मसलन इस चित्र की कोई मनोदशा नही है
ये रास्ता भूले किसी दूसरे मुसाफिर से नही मिलवाता
यदि ऐसा करता तो शायद
मैं हंसते हंसते रो पड़ती
मैं नाचते हुए उदास न होती

मैं रास्ता भूल गई हूँ
मैं कहीं खो गई हूँ
ये फ़िलहाल मुकम्मल बयान है मेरे लिए
जिसकी पुष्टि के लिए
कविता की शक्ल में जगह जगह
'शायद' टांक दिए है
किसी पार्टी वियर फॉर्मल शर्ट के एक्स्ट्रा बटन की तरह

मैं रास्ता भूल गई हूँ
इसलिए औपचारिक होकर मिटा रही हूँ
अपना थोड़ा भय
थोड़ा अपराधबोध

बुरा मत मानना यदि मै पूछूं कई बार
कैसे हो !
वैसे भी
जो रास्ता भूल जाए
उसकी बात का क्या बुरा मानना भला।

©डॉ.अजित

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

सही बात बुरा मानना भी नहीं चाहिये । सुन्दर रचना ।