Wednesday, April 12, 2017

ब्रेकअप के बाद

ब्रेकअप के बाद
उठ गया था रेखाओं से विश्वास
शुक्र बुध मंगल पर्वत डूब गए थे
अविश्वास के समन्दर में
हथेली देखते वक्त नजर आता था बस पसीना
वो उड़ रहा था
बहने के लिए नही मिलती थी उसको जगह
हाथ तंग हो गया था मेरा

भटक गया था मन का भूगोल
अटक गया था यादों का खगोल

कलाई पर जो बंधा था शुभता का धागा
उसको काटने की तमन्ना होती थी रोज़
चाहता था रास्ते मे न आए कोई मंदिर
प्रसाद को न करना पड़े इनकार

ब्रेकअप के बाद
सूरज शाम को चिढ़ा कर जाता था
सुबह आकर जगाती नही थी
पक्षियों की आवाजें लगती थी कोलाहल
डायरी में दर्ज हर्फ उलटे हो गए थे सब के सब

शराब का ख्याल आता मगर दिल न करता था
एक भी घूंट पीने को
अपने सुकूँ के लिए बड़ी लगती थी ये कीमत

ब्रेकअप के बाद
दिल मे क्या तो कोई सवाल न था
या फिर जवाब ही जवाब थे
जवाब कोई सुनता न था
और सवाल पूछने के लिए जगह न बची थी

ब्रेकअप के बाद
सम्वेदना का था एक बुद्धिवादी संस्करण
भावुकता का था एक लिजलिजा कलेवर
इन दोनों के मध्य दिल था
थोड़ा उदास ज्यादा निरुपाय

ब्रेकअप के बाद जो भी था
वो ठीक नही था
कितना ठीक नही ये नही बता सकता
क्यों नही बता सकता
इसकी वजह समझ आई
ब्रेकअप के बाद।

©डॉ. अजित

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर ।

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नयी बहु - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !