Saturday, August 19, 2017

बोला चाली वाया कहा सुनी

बोला चाली वाया कहा सुनी
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पिछली दफा हम इस बात पर लड़ें
कि चाय बनाते वक्त
पत्ती दूध में डालनी चाहिए या पानी में
अंत तक दोनों अपनी बात पर अड़े रहे
यह जानना जरूरी नही कि
किसकी बात सही थी
बल्कि ये बताना जरूरी है
अपनी-अपनी बात सही सिद्ध करने के लिए  
मुद्दत बाद कई चाय साथ पी हमने
और नही पहुंचे किसी निष्कर्ष पर
हमारी ज्यादातर लड़ाईयां
रही  बिना निष्कर्ष के
बस एक  जिंदगी को छोड़कर.
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उस दिन बेवजह तुनकर
तुमने कहा ‘शट अप’
मगर मैंने सुना ‘ग्रो अप’
इसलिए मैं फिर भी बोलता रहा लगातार
यकीन करना दोस्त !
तुम्हें चिढ़ाने के लिए नही
बल्कि ये समझाने के लिए
तुम्हारे साथ लगातार
बड़ा हो रहा था मैं.
**
तुम इस बात पर खफा थी
मुझे गुस्सा कम आता है
जबकि मैं इसे प्रचारित करता था
अपनी एक खूबी की तरह
और जब-जब मुझे गुस्सा आया
तुम्हें उस पर हंसी आई
इसलिए नही कि वो बचकाना था
बल्कि इसलिए
मुझे गुस्सा ठीक से जताना नही आता था
ये बात मेरे अलावा
केवल तुम जानती थी.
**
तुम खुद को समझते क्या हो?
ये तुम्हारा आम डायलोग था
मैंने हर बार इसका गलत जवाब दिया
थोड़ा फ़िल्मी टाइप का
अगर मैं सही से बता पाता
मैं खुद को क्या समझता हूँ
फिर शायद तुम पूछती
मैं खुद को तुम्हारा क्या समझाता हूँ?
जो तुमने कभी पूछा नही
और मैंने कभी बताया नही.
**
महीने भर ऐसा रहा
हमने एक दूसरे की शक्ल नही देखी
सम्पर्कशून्य होकर जीते रहे
अपनी-अपनी जिंदगी
महीने भर ऐसा भी रहा
हमनें देखा एक दूसरे को
और बदल लिया रास्ता
महीने भर बाद ऐसा हुआ
हम भूल गए महीना
और याद आया वीकेंड
फिर हसंते रहे अपनी बेवकूफ़ियों पर
हमारे साथ हंसता रहा वीकेंड
और रोता रहा बीता महीना.

©  डॉ. अजित